बच्चों के साथ ध्यान – योगदा पत्रिका
यह लेख 2007 में वाईएसएस पत्रिका में प्रकाशित किया गया था। यह एक शैक्षणिक मनोविज्ञानी द्वारा लिखा गया है, जिनका नाम पैट्रीशिया ईवर्ट्ज़ है। उन्होंने एस.आर.एफ / वाई.एस.एस रविवार स्कूल कार्यक्रमों में 30 से अधिक वर्षों तक सेवा की है।
नोट: नीचे दी गई छवियां मूल लेख में मौजूद नहीं थीं। पोस्ट को आकर्षक बनाने के लिए उन्हें जोड़ा गया है।
बच्चों के साथ ध्यान
द्वारा पैट्रीशिया ईवर्ट्ज़
YSS Magazine, Jan-Mar, 2007
मिस ईवर्ट्ज़ एक लम्बे समय से सेल्फ़ - रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप की सदस्या हैं। उन्होंने एजूकेशनल साईकाॅलोजी में एम.ए. किया है और एस.आर. के संडे स्कूल प्रोग्राम में लगभग 30 वर्षों तक सेवारत रही हैं। उन्होंने पढ़ाने के साथ ही कक्षा के साधनों के विकास व टीचर ट्रेनिंग प्रोग्राम भी संचालित किए हैं।
“ध्यान वह अवस्था है जब आप वास्तव में स्थिर होकर बैठते हैं और अपने हृदय को ईश्वर के प्रेम से भरने देते हैं” पाँच वर्ष की हीथर कहती हैं। वह प्रदर्षन करती है: अपने पैर जमीन पर रख कर, वह अपनी प्री-स्कूल की छोटी कुरसी पर अपनी पीठ एकदम सीधी करके बैठती हैं और ‘आकाश की और’ देखते हुए अपनी हथेलियाँ अपनी गोद में रख लेती हैं। वह आँखें बन्द कर लेती हैं और धीरे से अपनी दृष्टि ऊपर करके भौहों के मध्य बिन्दु पर स्थिर कर लेती हैं। उनका ध्यान बहुत कम समय के लिए होता है - केवल एक या दो मिनट के लिए - परन्तु छोटी सी हीथर कुछ बुनियादी बातें जरूर समझती है | एक अन्य रविवार को यू.एस.ए. के पसाडेना स्थित योगदा सत्संग सोसायटी आॅफ़ इण्डिया/सेल्फ़ - रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप मन्दिर में 10-12 वर्ष के लड़कों को एक समूह 10 मिनट के लम्बे ध्यान में अवस्थित है। बाद में उन्होंने ध्यान के समय उत्पन्न होने वाली चुनौतियों का अवलोकन किया जो बच्चों व व्यस्कों के लिए एक समान हैं। “ऐसी कौन सी बातें हैं जो तुम्हारे ध्यान में रूकावट डालती है ?” उनके शिक्षक ने पूछा। लड़कों ने उत्त दिया: आस पास की कक्षाओं का शोर, भावनाएँ, भूख या प्यास का लगना। “जब ये बातें ध्यान में बाधा डालती हैं तो तुम क्या कर सकते हो ?” “आध्यात्मिक नेत्र की और देखते रहो और ईश्वर से सहायता के लिए प्रार्थना करो।” “अपनी श्वास प्रश्वास के प्रति सजग रहो।” “मन ही मन में अभी गाए गए भक्तिगीत को दोहराते रहो।” ‘टाइम्स’ पत्रिका के अनुसार 10 करोड़ अमरीकी नियमपूर्वक ध्यान को किसी न किसी विधि का अभ्यास करते हैं। अब ऐसा लगता है कि बच्चे भी अपने माता पिता के उदाहरण का अनुकरण करना आरम्भ कर रहे हैं। “द लाॅस एंजेल्स टाइम्स” में कुछ समय पहले छपी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि पूरे देश में दर्जनों स्कूलों में ध्यान के कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। बच्चों के लिए उससे भी अधिक कार्यक्रम स्कूल की छुट्टी होने के बाद के क्लबों, धार्मिक स्थानों, ध्यान केन्द्रों और स्वतंत्र संगठन द्वारा चलाए जा रहे हैं। लाॅस एंजेल्स स्थित ‘नाॅन प्राफिट इनर किड्स फाउण्डेशन’ की संस्थापक और कार्यकारी निर्देशक सूजन कैसर ग्रीनलैण्ड का कहना है, “कोई दिन भी ऐसा नहीं जाता है जब मुझे किसी न किसी और से बच्चों को ध्यान सिखाने या उसके प्रभाव के अध्ययन के लिए, विनती न की गई हो। तीन हजार मील दूर कान्टे वेस्ट हिल्स पर न्यू हेवेन, काॅन, यू.एस.ए. के इनर सिटी किड्स के लिए बने मैगनेट स्कूल की सलाहकार लिण्डा बेकर कहती हैं कि उनके स्कूल के बाद होने वाले शिथिलीकरण कार्यक्रम के बच्चों की संख्या काफ़ी बढ़ गइ्र्र है जिसमें बच्चों का मार्गदर्शन ध्यान, योग तथा अन्य प्रक्रियाओं के द्वारा किया जाता है। बेकर ने यह कार्यक्रम 5 साल पहले शुरू किया था। उन्होंने बताया, “आरंभ में हमारे यहाँ 5 बच्चे थे परन्तु अब उनकी लम्बी प्रतीक्षा सूचियाँ है।” टी.वी. वीडियों गेम्स के व्यापक प्रभाव वाले इस अशान्त युग में ऐसे बच्चों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है जो ध्यान में चुपचाप बैठकर आन्तरिक शान्ति की खोज ज्यादा पसन्द कर रहे हैं। एक नवयुवती ने वाई.एस.एस./एस.आर.एफ. के ‘समर यूथ प्रोग्राम’ में अपने अनुभव के बारे में लिखा है, “ध्यान करते समय मेरा मन अत्यन्त शान्त हो गया। मुझे ऐसा लगा जैसे कि ईश्वर मेरा आलिंगन कर रहे हैं।” बच्चों को ध्यान सिखाने का सबसे अधिक प्रभावी तरीका क्या है ? हम ऐसी कौन सी विधि बताएँ जो उनके लिए सरल और रूचिकर हो ? 90 से अधिक वर्ष व्यतीत हो चुके हैं जब परमहंस योगानन्द ने राँची में लड़को का स्कूल खोला था जिसके माध्यम से योगदा सत्संग सोसाइटी आॅफ इण्डिया/सेल्फ़ - रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप ने युवावर्ग को ध्यान करना सिखाया। यहाँ पर वाई.एस.एस./एस.आर.एफ. सण्डे स्कूल टीर्चस, यूथ प्रोग्राम स्टाफ व अपने बच्चों के साथ ध्यान करने वाले माता पिता द्वारा बताए गए कुछ सुझाव हैं।
इसे सरल बनाएँ
परमहंस योगानन्द ने प्रायः यह बताया है कि ईश्वर आपके उतना ही निकट है जितना कि आपका मन उनको रखता है। बच्चों के जीवन में ईश्वर को लाने के लिए सच्चे हृदय से की गई प्रार्थना और कुछ क्षणों का मौन काफी है। यह जरूरी नहीं है कि प्रार्थनाएँ लम्बी और परिष्कृत हों “मुझे दर्षन दो” जैसी मन को सच्ची अनुभूति से भरपूर प्रार्थनाएँ ईश्वर का उत्तर पाने के लिए पर्याप्त हो सकती हैं। बच्चों के लिए यह जरूरी नहीं है कि वे प्रभावी ध्यान करने के लिए पूरा योग-विज्ञान समझें। अन्तर्दर्शन व्यायाम या पूरे मन से भक्तिगीत गाने जैसी सरल विधियाँ उनके लिए काफी प्रभावशाली हो सकती हैं।
उनकी यथास्थिति से शुरू करें
इस बात पर ध्यान दें कि आपके बच्चे को क्या प्रेरित करता है ? ऐसा क्या है जिसके प्रति कोई लड़का या लड़की स्वाभाविक प्रतिक्रिया व्यक्त करता है ? आपके बच्चे को उन्नत बनाने वाला क्या है ? उसी बिन्दु को उस लड़के या लड़की के जीवन में माध्यम की तरह प्रयोग करें, जिस पर ईश्वर को अंकित किया जाए। उदाहरण के लिए - यदि स्कूल में आपकी बेटी की कोई अन्तरंग सहेली है तो आप बता सकते हैं कि अपनी सहेली के प्रति उनकी भावनाएँ कुछ कुछ ईश्वर के प्रेम से मिलती हुई हैं। ध्यान के समय वह अपनी सहेली के प्रति अपनी भावनाएँ केन्द्रित करे और फिर वैसा ही प्रेम ईश्वर के प्रति अनुभव करे। उसके प्रेम को गहरा करने के लिए आप अन्तर्दर्शन व्यायाम का अभ्यास भी करा सकते हैं। उसका आरम्भ अनुभूतिपूर्वक अपनी सहेलियों और उनके परिवारों को प्रेम भेजने से हो जो आगे चलकर पड़ोसियों, नगर व अन्त में विश्व के सभी लोगों के लिए विस्तारित हो। यदि आपका बच्चा खेलों में रूची रखता हो तो उसे बताएँ कि कैसे वह अपना ध्यान अपनी दोनों भौहों के बीच में केन्द्रित करने से इच्छाशक्ति विकसित होती है। बच्चों को यह समझने में मदद करें कि किस तरह से ध्यान उनके दैनिक जीवन में सहायक सिद्ध होगा।
इसे खेल जैसा बनाएँ
बच्चों के सामने ध्यान इस तरह से प्रस्तुत करें जो उनके खिलाड़ी स्वभाव के अनुकूल हो। जब बच्चें एक बार ध्यान की सही मुद्रा सीख लें तो उनकी समझ को परखने का एक तरीका हैय आप अपनी रीढ़ की हड्डी झुकाकर बैठें, पैर हिलाएँ और आँखें कस कर बन्द कर लें कि वह बार-बार झपकें। इसके बाद पूछिये, “क्या मैं ध्यान के लिए तैयार हूँ?” अधिकतर बच्चे आपकी गलतियों को सही करने में पूरा मजा लेंगे! “नहीं। आपको अपनी पीठ इस तरह से सीधी रखनी है।” “स्थिर होकर बैठिए।” “अपने पैर जमीन पर सीधे रखिए।” “अपनी आँखें कस के नहीं, धीरे से बन्द कीजिए।” तब उनसे कहें, “इनती सारी बातंे याद रखनी पड़ती हैं। क्या तुम लोग यह सब एक बार में कर सकते हो ? सच में ? करके दिखाओ।” ध्यान के दौरान यदि बच्चे कुलकुला रहे हैं तो आप ध्यान से पहले एक खेल, खेल सकते हैं। उनसे ध्यान की मुद्रा में बैठने को कहें और उन्हें बताएँ कि आप उनकी ठोढ़ी के नीचे किसी पंख या रेशमी स्का़र्फ से गुदगुदी करने वाले हैं। यह देखें कि यह करने पर भी क्या बच्चे ध्यान करने की सही मुद्रा में बैठते हैं। तब उन्हें अपनी जाँच करने दें। इसके बाद कम समय का ध्यान कराएँ जिसमें (स्वयं को शामिल करते हुए) हर एक को चुनौती दें कि सब लोग उसी तरह से निश्चल बैठें जैसे कि खेल के समय बैठे थे। इस प्रकार के संक्षिप्त व्यायाम मजे़दार तरीके से ध्यान की बुनियादी बातें सिखांएगे।
उम्र के अनुकुल भाषा और प्रविधियाँ प्रयुक्त करें
ऐसी भाषा का प्रयोग करें जिसे बच्चे सरलता से समझ सकें। जो शब्द वे नहीं जानते हैं उनकी व्याख्या ठीक से करें। मान लें कि आप ध्यान का आरंभ परमहंस योगानन्द के इस भक्तिगीत से करते है, “सुनों, सुनों, सुनों।” भूलूँगा न तुझे कभीय छोडूंगा न तुझे कभी।” उन्हें समझाएँ कि ‘छोडूंगा’ का अर्थ क्या हैै। ज्यादा छोटे बच्चों से पूछें, “तुझे, कहने का क्या मतलब है ? “ उन्हें अपने शब्दों में अर्थ बताने का अवसर दें। फिर पूरे मन में भक्तिगीत गाएँ - पहले समान्य स्वर में, उसके बाद और धीमे तथा कोमल स्वर में पुनः उसे मन में दोहराएँ, “हम अपने मन में शब्दों को अत्यन्त धीमे स्वर में गाएँ जहाँ केवल ईश्वर में हमें सुन सकते है।” (बच्चों के साथ गाते समय आपको हारमोनियम बजाना जानने की जरूरत नहंी है। वाई. एस. एस./एस. आर. एफ., सन्यासी व सन्यासिनियों द्वारा गाए गए टेप बजाएँ)। इसी प्रकार यदि आप बच्चों से प्रतिज्ञापन कराएँ तो अभ्यास के पहले उनकी समझ को परख लें। जैसे जब आप प्रतिज्ञापन कराते हैं, “मैं आपकी उपस्थिति के दुर्ग से सरंक्षित हूं” तो आप निश्चयपूर्वक जाने कि बच्चे ‘दुर्ग’ का अर्थ समझ रहे हैं। उन्हे बताएँ कि दुर्ग कितना सढुढ़ व शक्तिशाली होता है और किस प्रकार से ईश्वर द्वारा दी गई अदृश्य सुरक्षा कवच किसी किले से कहंी बनकर सुढृढ़ है। फिर इस विज्ञापन को दोहराएँ पहले सामान्य स्वर में और उसके बाद धीमे व कोमल स्वर में फिर मन में दोहराएँ। किशोरों के लिए ‘मेटाफिजिकल मेडिटेशन’ में अनेक विधियाँ है जिसमें से आप शब्दशः दोहरा सकते हैं परन्तु “माइरेड” “आॅल परवेडिंग” और “इमैन्सीपेशन” जैसे शब्दों के बारे में आपस में समझ लें जो कई अनुच्छेद में प्रयोग किए गए हैं। (वाई. एस. एस./एस. आर. एफ. वर्ल्ड वाइड प्रेयर सर्किल की बुकलेट में दी गई) अन्तदर्षन व्यायाम, भक्तिगीत, प्रतिवेदन, उपचार प्रविधि का अभ्यास बच्चों द्वारा प्रभावी ढंग से हो सकता है।
संघर्ष में उनके भागीदार बनें
किसी-किसी समय ध्यान हम सब के लिए संघर्ष जैसा बन जाता है। जब भी हमारे हृदय अशान्त होते हैं तो हमारे लिए स्थिर बैठ पाना और ईश्वर पर ध्यान केन्द्रित करना एक चुनौती हो सकता है। संडे स्कूल की एक शिक्षिका ने अपने शिष्यों के साथ कैसे इस विषय में समाधान निकाला: “कुछ छोटी उम्र (6 - 8 वर्ष) की लड़कियों को ध्यान कराते समय अशान्त विचारों को दर्शान के लिए मैनंे तेल की एक बोतल में कुछ चमकदार वस्तु डाल दी। ध्यान से पहले मैंने उस बोतल को हिला कर उन्हें समझाया, “यह चमकदार वस्तु हमारे उन विचारों को दर्शा रही है जो हमारे मन में घमंड रहे हैं। यदि मैं इस बोतल को रख दूँ और हिलने न दूँ तो यह चमकदार वस्तु बोतल की तली में बैठ जाएगी। जब हम ध्यान करते हैंय हमारे विचारों को विश्राम मिलता है और हम स्वयं को अधिक शान्त व स्थिर अनुभव करते हैं। मैं इस बोतल को नीचे रख रही हूँ। अब हम ध्यान करंेगे। हम देखेंगे कि ध्यान के दौरान हमारे विचार स्थिर होते हैं कि नहीं। हम यह भी देखेंगे कि बाद में बोतल कैसी दिखाई देती है। ध्यान के बाद, मैंने कक्षा की लड़कियों से पूछा “तुम्हारा ध्यान कैसा रहा ? क्या तुम्हारे विचार बोतल की चमकदार वस्तु की तरह स्थिर हो पाए?” एक लड़की ने कहा, “मेरे विचार अभी भी ऐसे ही हैं।” और उसने बोतल को जार से हिला दिया जिससे की चमकदार वस्तु पूरी बोतल में बिखर गई। यह चर्चा के लिए एक अच्छा विषय बन गया। हम सब लोग इस बात पर सहमत हो गए कि हमारे ध्यान की अवस्था भी कभी-कभी इसी प्रकार की होती है। मैंने कहा - कभी-कभी हम ध्यान के दौरान ईश्वरीय शान्ति का अनुभव नहीं करते हैय परन्तु ईश्वर हमें किसी दूसरे रूप में अपना आर्शीवाद प्रदान करते हैं जैसे हमारी किसी समस्या का समाधान हो जाए, हो सकता है ईश्वर ने हमारी कोई दूसरी कठिनाई दूर कर दी हो। यह परस्पर बातचीत करने का एक बड़ा अच्छा अवसर था कि कभी न कभी हमस ब लोग ध्यान के समय अपने मन के साथ संघर्ष करते हैं और यह भी समझ लेना कि हम लोग कितने ही अशान्त क्यों न हो हमारा कोई प्रयास कभी भी पुरस्कार नहीं होगा।
प्रेरणा दें परन्तु दबाव न डालें
श्री श्री दया माता ने कहा है, “किसी बच्चे का बलपूर्वक किसी विषिष्ट आध्यात्मिक साँचें में ढालने की कोशिश गलत बात है। पहले उनके मन में आध्यात्मिकता के प्रति इच्छा व रूचि होनी चाहिये। यदि बच्चा ज्यादा छोटी उम्र से आध्यात्मिक दृष्टिकोण विकसित करने के लिए प्रेरित किया जाता है तो उसमें इस तरह का रूझान देखा जाएगा: ईश्वर के प्रति प्रेम, ईश्वर पर विश्वास, ईश्वर के साथ मित्रता की अनुभूति।” अपने बच्चों को ध्यान के प्रति जागरूक करें और देखें कि उनकी प्रतिक्रिया क्या है ? कुछ बच्चे इसका आनन्द लेंगे और कभी-कभी ध्यान करना चाहेंगेय जब कि दूसरे बच्चे तैयार नहीं भी हो सकते हैं। इस बात का ध्यान रखें कि यदि वे इस समय ध्यान करने में रूचि नहीं दिखाते हैं तो भविष्य में दिखा भी सकते हैं। यदि ध्यान के लिए तैयार होने के पहले उनपर दबाव नहीं डाला जाएगा तो बाद में वे अधिक ग्रहणशील हो सकतेे हैं। फूलों के उदाहरण पर विचार करें। प्रत्येक फूल अलग-अलग समय पर खिलता है फिर भी हर फूल कितना सुन्दर होता है। किसी कली को खिलाने के लिए तैयार होने के पहले यदि बलपूर्वक खोला जाए तो फूल विनष्ट हो जाएगा। फूलों को अपने सही समय पर खिलने के लिए छोड़ दिया जाए तो अति सुन्दर फूल खिलेंगे। बाद में खिलने वाले फूल उतने ही सुन्दर होते है जितने कि पहले खिलने वाले फूल इसलिये जबरदस्ती करने की आवश्यकता नहीं है | यदि आपके बच्चे प्रतिदिन ध्यान करने में रूचि नहीं दिखाते हैं, तो देखें कि क्या वे सप्ताह में एक बार पूरे परिवार के साथ ध्यान करने के इच्छुक हैं ? ध्यान का समय कम रखें और बच्चों को प्रार्थनाएँ कराने या कीर्तन के समय सरल बाजे बजाने का अवसर दें। अगर यह भी ज्यादा लगे तो चुपचाप उदाहरण प्रस्तुत करें। “मेरे बच्चे संडे स्कूल में नियमित ध्यान करते हैं।” एक माँ ने टिप्पणी की, “परन्तु बच्चे घर पर ध्यान करने में अधिक रूचि नहीं लेते हैं। जैसे भी हो वे मुझे ध्यान करते हुए देखना पसन्द करते हैं। कभी-कभी वे मुझसे रात को अपने कमरें में ध्यान कहते हैं। वे चाहते हैं कि मैं अपनी प्रार्थनाएँ तेज स्वर में करूं, फिर जब मैं ध्यान करने लगती हूँ, वे सो जाते हैं। मैं हमेशा तो ऐसा नहीं कर पाती हूँ, परन्तु जब कभी संभव होता है तो अवश्य करती हूँ।
ध्यान संक्षिप्त रखें
एस. आर. एफ. संडे स्कूल प्रोग्राम में, हम लोगों ने प्रायः देखा है कि बच्चों के लिए निम्नलिखित समय अधिक अनुकूल रहता हैः 3-5 वर्ष - 1-3 मिनट 6-8 वर्ष - 3-5 मिनट 9-12 वर्ष - 5 मिनट से आरंभ करके धीरे-धीरे 10-15 मिनट जैसे-जैसे वह परिपक्व हों। 13-15 वर्ष - 5-10 मिनट से आरंभ करें। धीरे-धीरे 20 मिनट या और ज्यादा समय दें - जिससे वे अनुभव प्राप्त करें। ध्यान केवल मौन रहने का समय नहीं है। उसमें प्रार्थनाएँ, ध्यान के समय की गई बातचीत, भक्तिगीत, प्रतिज्ञापन, अन्तर्दर्शन या अन्य लोगों के लिए की गई प्रार्थना भी शामिल है। मौन रहने का वास्तविक समय बच्चों के उम्रसमूह पर निर्भर है। जैसे प्री-स्कूल वाले बच्चों के लिए 5-15 सेकेंड का समय। “यदि ध्यान के अन्त में एक लम्बी निश्वास सुनती हूँ।” एक शिक्षिका ने टिप्पणी की, “तो मैं समझ जाती हूँ कि मैंने बच्चों से आज ज्यादा देर तक ध्यान करवा दिया है।” जैसे कि शो बिजनेस में होता है कि उन्हें और पाने की इच्छा के साथ छोड़ देना चाहिये जिससे दिलचस्पी बनी रहे।
दूसरे बच्चों के साथ ध्यान करने का अवसद दें। यदि आपके बच्चे ध्यान में रूचि लेते हैं तो हो सके तो उन्हें बच्चों के साथ ध्यान का अवसर दें। वाई. एस. एस. ध्यान केन्द्र या केन्द्र के साप्ताहिक संडे स्कूल क्लास में जाना उनके प्रयास को सशक्त बना सकता है। 10 वर्ष या इससे अधिक उम्र के बच्चें उम्र एस.आर.एफ. समर यूथ प्रोग्राम में अधिक प्रोत्साहन प्राप्त करते हैं। एक लड़के ने टिप्पणी की, “मैं फिर आना चाहता हूँ क्यांेकि मैंने सामूहिक ध्यान में आध्यात्मिक अनुभूति प्राप्त की है। मैंने सबसे अधिक आनन्द भक्ति संगीत में प्राप्त किया है। मैंने सचमुच पूरे मन से भक्तिगीत गाए और अत्यन्त आनन्दित हुआ।”
आध्यात्मिक विकास को धीरे-धीरे होने वाली एक प्रक्रिया मानें। इस को ध्यान में रखें कि परिवर्तन धीरे-धीरे होने वाली एक प्रक्रिया है और सदा प्रत्यक्ष रूप दिखाई भी नहीं देती हैं। बच्चों व बड़ों के अपने उतार-चढ़ाव होंगे। विशेषकर कठिन समय पर उन्हें प्रोत्साहन दें। यदि वे अपनी आध्यात्मिक आदतों से भटक जाएँ तो हतोत्साहित न हों। बच्चों के लिए ऐसे अवसर कुछ अनमोल सीख लेने के होते हैं। थूथ प्रोग्राम के शिविर में वर्षों तक जाने वाली एक युवती अपने आखिरी शिविर से जुडे़ हुए अनुभव बताती हुई कहती हैं: “शिविर में आने के पहले मेरा जीवन बहुत ज्यादा असंगठित व अव्यवस्थित था। इस सप्ताह शिविर में आने पर मेरी समझ में आया कि मैंने अपनी आन्तरिक शान्ति के प्रति अन्तर्दृष्टि खो दी थी इसी से लगा हुआ। मैंने ध्यान के द्वारा वह खोई हुई गहन दिव्य शान्ति पा ली। मैं अनुभव कर रही हूंँ कि मैंने वह आधार पुनः पा लिया है जिसके परिणामस्वरूप मैं उस शान्ति को पुनः अपने साथ घर ले जा सकूँगी।