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इस आधुनिक युग में, सभी को प्रशिक्षित किया जाना आवश्यक होता है, क्योकिं उनके सामने कई प्रलोभन आते हैं। सभी अभिभावकों को अपने बच्चों को प्रशिक्षित करना चाहिये कि वे बेहतर आदतों की ओर रुझान का विकास करें | अपने बच्चों को मार्ग-दर्शन देने की जिम्मेदारी को अधिक गंभीरता से लें।
- श्री परमहंस योगानंद
योगदा पत्रिका, Oct-Dec 2007
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कभी भी अपने आध्यात्मिक दृष्टिकोण अपने बच्चों पर जबरदस्ती मत जादिये। यह कभी मत कहिये कि 'मैं ध्यान करता हूँ इसलिये तुम्हें भी करना ही होगा।' बच्चे फूलों की तरह होते हैं। उन्हें बढ़ने और अपने व्यक्तित्व विकसित करने का अवसर दें। उसमें गलत कुछ भी नहीं है। आपका काम है उनके समक्ष अपना अच्छा उदाहरण प्रस्तुत करना और उन्हें दिषा ज्ञान देना ताकि वे ईष्वर से प्रेम करना सीखें, जिम्मेदारियों को स्वीकार करना और निभाना सीखें, निःस्वार्थी होना एवं दूसरों के प्रति सहृदय होना सीखें - यही सब गुण तो आध्यात्मिक प्रवृत्ति के मनुष्य की पहचान है।
- श्री दया माता
बच्चों का उचित लालन-पालन
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अपने बच्चों के साथ तर्क करें। उन्हें याद दिलाएं कि गलत आदतों को बढ़ावा देने से व गल्तियों की हौदी में पैर रख रहे हैं। यदि वे उस मार्ग पर चलते चले गये, तो उससे बाहर आने में बहुत देर हो जाएगी। सारा जीवन का आनन्द उनके लिये समाप्त हो जाएगा।
- श्री परमहंस योगानंद
योगदा पत्रिका, Oct-Dec 2007
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बच्चों की सच्ची शिक्षा घर में ही शुरू होती है। स्कूलों की हालत तो खराब हो ही गयी है। परन्तु वहाँ की बिगड़ती परिस्थितियों के लिए केवल स्कूल ही दोषी नहीं है। दोष जिसका है उसी पर आरोपित होना चाहिये। और दोष है घरों में उचित षिक्षा के अभाव का।
- श्री दया माता
बच्चों का उचित लालन-पालन
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बच्चों के लालन-पालन में पूर्ण सफलता की उम्मीद तभी बनेगी जब माता-पिता स्वयं अपना उदाहरण बच्चों के समक्ष रखकर उचित मूल्यों की शिक्षा देंगे। बच्चों को यह देखने का अवसर मिलना चाहिये कि उन पर जो मूल्य लागू किये जा रहे हैं उनके पालन का परिणाम कितना अच्छा होता है। जब षिक्षा, उदाहरण और प्रेम तथा समझदारी के साथ दी जायेगी तब वह बच्चों में पूर्वजन्मों के संस्कार स्वरूप विद्यमान अच्छी प्रवृत्तियों को बल देगी और उनके आगे के विकास के लिये अवसर प्रदान करेगी। इस प्रकार बच्चों में अंतर्निहित अच्छे संस्कारों का या प्रवृत्तियों का पोषण करते जाना और उन्हें नये संस्कार देना ही माता-पिता को ईष्वर द्वारा दी गयी ज़िम्मेदारी है - सचमुच एक बड़े ही कौषल का काम।
- श्री दया माता
बच्चों का उचित लालन-पालन
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बच्चों को अनुषासन की आवष्यकता होती है। मेरा मतलब यह नहीं है कि उन्हें मारना चाहियेय इस बात को कृपा करके ठीक से समझ लीजिये। बच्चों के साथ कभी क्रोध न करें। आपको ढृढ़ता के साथ बच्चों का मार्गदर्षन तो करना ही होगा परन्तु उसमें भी प्रेम होना चाहिये। यहाँ मैं अपने गुरूदेव (श्री श्री परमहंस योगानन्द) के सान्निध्य में व्यतीत हुए हमारे कई वर्षो का उल्लेख कर सकती हूँ। हम सब युवा षिष्य एक तरह से बच्चे ही थे। गुरूदेव हमें समझाते थे और आवष्यकता पड़ने पर ढृढ़ता का अवलम्ब भी करते थे परन्तु हमेषा ही अत्यन्त प्रेम के साथ। मेरा अभिप्राय यह है। यही आदर्ष तरीका है।
- श्री दया माता
बच्चों का उचित लालन-पालन
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सदा अपने बच्चों को ध्यान करने की शिक्षा देकर उनमें दिव्य चेतना स्थापित करने का प्रयत्न करें, ताकि वे माया के नकली आनन्द की अग्नि के साथ खेलने के लिए प्रलोभित न हों।
- श्री परमहंस योगानंद
मानव की निरन्तर खोज
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अपने बच्चों के साथ बात-चीत के लिये समय निकालिये। उनके प्रश्नों के उत्तर दीजिये। वे समझ सकें ऐसी भाषा में उन्हें समझा कर बताइये। केवल ‘‘ऐसा मत करो’’ कहने से काम नहीं चलेगा। आप को उसे इस प्रकार समझाना पड़ेगा कि वह मन लगा कर उसे सुने। सुनने से मनुष्य सीखता है चाहे उस वक्त जो कहा जा रहा हो उसमें से हर बात से वह सहमत भले ही न हो। बच्चे में सुनने की इच्छा जगाइये। अच्छे उपदेष उसकी चेतना में अंकित हो कर रह जायेंगे। जब वह स्वयं किसी दिन माता या पिता बनेगा तब उन उपदेषों के लिए वह आपके प्रति कृतज्ञता अनुभव करेगा।
- श्री दया माता
बच्चों का उचित लालन-पालन
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- Akshey (on Oct 29, 2024)